भूमिका:
क्या आपने कभी सुना है कि किसी को बचपन से ही डायबिटीज़ है, जबकि किसी और को 40 की उम्र के बाद ये समस्या शुरू हुई? शायद हाँ। दरअसल डायबिटीज़ एक ही बीमारी नहीं है, बल्कि इसके भी दो प्रमुख प्रकार होते हैं – टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज़। दोनों का इलाज, लक्षण और कारण अलग-अलग होते हैं।
इस लेख में हम बिना किसी मेडिकल जटिलताओं के, बिल्कुल आसान भाषा में समझेंगे कि ये दोनों प्रकार कैसे अलग हैं और आपकी ज़िंदगी पर क्या असर डालते हैं।
टाइप 1 डायबिटीज़ क्या है?
टाइप 1 डायबिटीज़ एक ऑटोइम्यून स्थिति है, मतलब आपकी खुद की इम्यून सिस्टम गलती से शरीर के भीतर मौजूद इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं (Beta cells) पर हमला कर देता है। ये बीमारी अधिकतर बचपन या किशोरावस्था में शुरू होती है, इसलिए इसे पहले juvenile diabetes भी कहा जाता था।
मुख्य बातें:
- शरीर बिल्कुल भी इंसुलिन नहीं बनाता।
- यह अनुवांशिक हो सकती है, लेकिन जरूरी नहीं।
- रोगी को रोज़ इंसुलिन इंजेक्शन या पंप से इंसुलिन देना होता है।
यह बीमारी अचानक शुरू हो सकती है और इलाज न हो तो जानलेवा भी हो सकती है।
टाइप 2 डायबिटीज़ क्या है?
टाइप 2 डायबिटीज़ उम्र के साथ धीरे-धीरे विकसित होती है। इसमें शरीर इंसुलिन तो बनाता है, लेकिन उसे सही से उपयोग नहीं कर पाता। इसे Insulin Resistance कहते हैं।
यह प्रकार ज़्यादातर वयस्कों में देखा जाता है, लेकिन आजकल बच्चों और किशोरों में भी देखा जा रहा है, खासकर उन लोगों में जो शारीरिक रूप से कम सक्रिय हैं और मोटापा है।
मुख्य बातें:
- शरीर इंसुलिन बनाता है, लेकिन उसका असर कम होता है।
- लाइफस्टाइल, मोटापा और डाइट इसका बड़ा कारण है।
- दवाइयों, डाइट, वर्कआउट और ज़रूरत पड़ने पर इंसुलिन से कंट्रोल होता है।
सुझाव
- अगर परिवार में किसी को डायबिटीज़ है, तो समय-समय पर शुगर टेस्ट करवाते रहें।
- रोज़ाना वॉक या हल्की एक्सरसाइज ज़रूर करें।
- मीठा कम करें, लेकिन डरें नहीं – बैलेंस ज़रूरी है।
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