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डायबिटीज़ और हार्मोनल बदलाव

डायबिटीज़ और हार्मोनल बदलाव: जानिए इनके बीच गहरा संबंध

डायबिटीज़ और हार्मोनल बदलाव: जानिए इनके बीच गहरा संबंध

डायबिटीज़ सिर्फ शुगर लेवल की बीमारी नहीं है, यह हमारे शरीर के हार्मोनल सिस्टम से भी गहराई से जुड़ी होती है। हार्मोन हमारे शरीर के अंदर केमिकल मैसेंजर होते हैं जो मेटाबॉलिज्म, ऊर्जा, भूख और ब्लड शुगर को नियंत्रित करते हैं। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि डायबिटीज़ और हार्मोनल बदलाव का एक-दूसरे से क्या संबंध है।


1. इंसुलिन – डायबिटीज़ का मुख्य हार्मोन

इंसुलिन एक हार्मोन है जो अग्न्याशय (Pancreas) से निकलता है। इसका काम होता है शरीर के ब्लड में मौजूद ग्लूकोज़ को कोशिकाओं में पहुँचाकर ऊर्जा में बदलना। जब शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता या कोशिकाएं उस पर प्रतिक्रिया नहीं करतीं, तब टाइप 2 डायबिटीज़ होती है।

  • इंसुलिन रेजिस्टेंस: जब कोशिकाएं इंसुलिन पर प्रतिक्रिया देना बंद कर देती हैं।
  • इंसुलिन की कमी: जब अग्न्याशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बनाता।

2. थायरॉयड हार्मोन और डायबिटीज़

थायरॉयड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन जैसे T3 और T4 मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करते हैं।

  • हाइपोथायरॉयडिज़्म (थायरॉयड की कमी): मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है, जिससे वजन बढ़ता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस का खतरा बढ़ता है।
  • हाइपरथायरॉयडिज़्म (अधिक थायरॉयड): शरीर का मेटाबॉलिज्म तेज हो जाता है, जिससे हाइपोग्लाइसीमिया (लो ब्लड शुगर) का खतरा हो सकता है।

3. कोर्टिसोल – तनाव हार्मोन का असर

जब हम तनाव में होते हैं, तो शरीर कोर्टिसोल नामक हार्मोन बनाता है। यह हार्मोन ब्लड शुगर लेवल को अस्थायी रूप से बढ़ा सकता है।

  • लंबे समय तक तनाव रहने से शरीर में लगातार कोर्टिसोल उच्च स्तर पर रहता है, जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस और टाइप 2 डायबिटीज़ हो सकती है।
  • नींद की कमी और क्रॉनिक स्ट्रेस इस स्थिति को और बढ़ा सकते हैं।

4. प्रेगनेंसी और हार्मोनल डायबिटीज़ (Gestational Diabetes)

गर्भावस्था में शरीर कई हार्मोन रिलीज करता है जो इंसुलिन की कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। यह स्थिति Gestational Diabetes कहलाती है और यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो माँ और बच्चे दोनों को खतरा हो सकता है।


5. महिलाओं में हार्मोनल बदलाव और डायबिटीज़

  • पीरियड्स के दौरान: एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन शुगर लेवल को प्रभावित करते हैं।
  • मेनोपॉज़: इस दौरान हार्मोन स्तर में गिरावट होती है जिससे इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ सकता है।
  • PCOS (Polycystic Ovary Syndrome): यह स्थिति भी डायबिटीज़ के खतरे को बढ़ा देती है।

6. डायबिटीज़ कंट्रोल के लिए हार्मोनल बैलेंस क्यों जरूरी है?

सिर्फ ब्लड शुगर कंट्रोल करने से काम नहीं चलेगा। यदि आपके हार्मोन्स असंतुलित हैं, तो शुगर लेवल को कंट्रोल में रखना मुश्किल हो सकता है।

क्या करें?

  • नियमित रूप से हार्मोनल जांच कराएं (जैसे TSH, Cortisol, Insulin)
  • तनाव कम करने के उपाय करें – योग, ध्यान, पर्याप्त नींद
  • संतुलित आहार लें और प्रोसेस्ड फूड से बचें
  • नियमित एक्सरसाइज करें

निष्कर्ष:

डायबिटीज़ और हार्मोनल बदलाव एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। इंसुलिन से लेकर कोर्टिसोल, थायरॉयड तक – हर हार्मोन का अपना योगदान होता है। अगर आप डायबिटीज़ से जूझ रहे हैं, तो हार्मोनल हेल्थ पर ध्यान देना उतना ही ज़रूरी है जितना कि ब्लड शुगर को मॉनिटर करना।

स्वस्थ जीवन के लिए हार्मोन और शुगर – दोनों को संतुलित रखें।

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